20 वीं सदी की शुरुआत में आस्ट्रेलिया ने तूफानों के नामकरण की शुरुआत की।लोगों ने अपनी बेवफा
पत्नी-प्रेमिका और भ्रष्ट नेताओं के नाम पर भी तूफानों का नाम रखना शुरू
किया। अमेरिका में भी महिलाओं के नाम पर
तूफानों का नामकरण होने लगा।बंगाल की खाड़ी में भी इसी की नकल होती थी।
हालांकि 1970 के दशक में वर्ल्ड मेट्रोलॉ जिकल
ऑर्गेनाइजेशन ने तूफानों के नामकरण और नामों को आरक्षित किए जाने
की व्यवस्था शुरू की।तूफानों के नाम महिलाओं पर ही रखे जाने का भी कई संगठनों ने विरोध किया।फिर तय किया गया कि नाम रखने में सामंजस्य
बनाया जाए।पिछले महीनों जिस तूफान ने महाराष्ट्र-गुजरात में दस्तक दी थी है उसका 'फयान' नाम म्यांमार ने आरक्षित
कराया था। इसका मतलब है पेड़ों से गिरती हुई चेरी। अगले तूफान का नाम 'वार्ड' ओमान ने
आरक्षित कराया हुआ है।इसके बाद पाकिस्तान का नाम 'लैला' उपयोग
में लाए जाना तय हुआ।अगला नाम श्रीलंका का 'बंदू' है। इसके बाद थाईलैंड का नाम 'फेट' उपयोग में लाया जाएगा।फिर बांगलादेश का नाम गिरी उपयोग में लाया जाएगा। इसके बाद भारत का 'जल' नाम
तूफान के लिए उपयोग में लाया जाएगा।भारत ने लहर, मेघ, सागर, वायु नाम भी आरक्षित कराए
हुए हैं।पाकिस्तान ने लैला, नीलम, नीलोफर,
बर्दाह, तितली, बुलबुल नाम आरक्षित कराए हुए
हैं।इनमे से निलोफर ने फ़िलहाल दस्तक दी हे